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मादा खरगोश 8 से 10 महीने की उम्र की होनी चाहिए । नर खरगोश 10 से 12 महीने ( नर खरगोश 8 से 10 महीने की उम्र में ही परिपक्व हो जाते हैं ) किंतु उच्च कोटी के खरगोश की प्राप्ति के लिए प्रजनन के समय उनकी उम्र एक वर्ष की होनी चाहिए।

व्यस्क शारीरिक वजन को प्राप्त करने के बाद 8-10 महीने की उम्र में खरगोशों का चुनाव किया जा सकता है और मादा खरगोश के प्रजनन के लिए चुनाव उच्च लिटर आकार से होना चाहिए। प्रजनन के लिए स्वस्थ खरगोश का चयन किया जाना चाहिए। स्वस्थ खरगोश सक्रिय होते हैं और आमतौर पर भोजन और पानी लेने के मामले में वे सामान्य होते हैं। इसके अलावा वे अपने शरीर को साफ रखते हैं। स्वस्थ खरगोश के बाल सामान्यतः साफ, मुलायम और चमकीले होते हैं। मादा खरगोशों में उत्तेजक संकेत या ऋतुचक्र (हीट) लक्षणों में कोई विशिष्ट ऋतुचक्र नहीं होता। जब कभी मादा खरगोश नर खरगोश को संभोग के लिए छूट देती है, तभी मादा खरगोश को ऋतुचक्र में नर खरगोश के पास रखा जाता है, यदि मादा खरगोश ऋतुचक्र में नही है तो मादा खरगोश उदासीनता दिखाती है और अपने शरीर के पिछले हिस्से को ऊपर नहीं उठाती है। यदि उसी समय मादा खरगोश उत्तेजक नहीं होती, तो वह पिंजरे के कोने में चली जाती है और नर खरगोश पर हमला कर देती है।

उत्तेजक संकेत देने वाली मादा खरगोश को नर खरगोश के पिंजरे में लाया जाता है। यदि मादा खरगोश ऋतुचक्र में हो तो वह अपनी पूंछ ऊपर उठाकर नर खरगोश को अपने साथ संभोग करने का आमंत्रण देती है। सफलतापूर्वक संभोग के बाद नर खरगोश एक ओर गिर जाता है और विशेष तरह की चीख जैसी आवाजें निकालता है। एक नर खरगोश का इस्तेमाल सप्ताह में 3 या 4 बार से अधिक के लिए नहीं किया जाना चाहिए। इसी तरह एक नर खरगोश को दिन में 3 से 4 बार से अधिक प्रजनन के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। प्रजनन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले नर खरगोश को पर्याप्त आराम और अच्छा पोषण दिया जाना चाहिए। एक फार्म में प्रत्येक 7 मादा खरगोशों के लिए 3 नर खरगोश चाहिए। एक या दो नर खरगोश अतिरिक्त पाले जा सकते हैं ताकि यदि प्रजनन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले खरगोश बीमार हो गए, तो उनका इस्तेमाल किया जा सके। ब्रायलर खरगोशों के मामले में गर्भकाल 28 से 31 दिन का होता है। गर्भावस्था का पता प्रजनन के 15 से 18 दिन के बाद मादा खरगोश के पेट को छूकर लगाया जा सकता है। पिछले पैरों के बीच में पेट के हिस्से में स्पर्श करना चाहिए। यदि कोई गोल मटोल चीज ऊंगलीयों के बीच में पकड़ में नही आता है तो पुनः ब्रीडिंग करानी चाहिए । आमतौर पर संभोग के 25 दिन के बाद गर्भवती मादा खरगोशों का वजन 200 से 300 ग्राम बढ़ जाता है। इस बड़े हुए वजन को खरगोशों को उठाकर या तौलकर देखा जा सकता है। यदि गर्भवती मादा खरगोश को नर खरगोश के साथ संभोग करने की छूट दी जाए तो यह ऐसा नहीं करेंगे।

गर्भावस्था का पता लगाने के बाद गर्भवती मादा खरगोश को सामान्य भोजन से 100 से 150 ग्राम अधिक भोजन की मात्रा खिलाई जाना चाहिए। गर्भवती मादा खरगोश को संभोग के बाद 25वें दिन अलग पिंजरे में भेजा जा सकता है या सूखे नारियल के रेशे या धान की पराली का इस्तेमाल गर्भवती मादा के घोंसले में बिछाने की सामग्री के तौर पर किया जा सकता है। गर्भवती मादा खरगोश अपने पेट से बालों को तोड़ देती है और किडलिंग (बच्चे देने) के 1 या 2 दिन पहले नवजात के लिए एक घोंसले का निर्माण करती है। इस समय के दौरान खरगोश को परेशान नहीं किया जाना चाहिए और बाहर से लोगों के पिंजरों के पास आने की छूट नहीं दी जानी चाहिए। आमतौर पर किंडलिंग सुबह जल्दी होती है। सामान्य तौर पर प्रजनन प्रक्रिया 15 से 30 मिनट की अवधि में समाप्त होती है। मां अपने आप को और अपने छोटे बच्चों को सुबह जल्दी ही साफ कर लेती है। नेस्ट बॉक्स की जांच सुबह जल्दी ही कर लेनी चाहिए। यदि कोई मृत बच्चा हो तो ऐसे बच्चे को नेस्ट बॉक्स से तुरंत हटा दिया जाना चाहिए। घोसले की जांच के दौरान मां बैचेन हो सकती है। इसलिए माँ को घोसले की जांच के पहले ही हटा लिया जाना चाहिए।

जन्म के दौरान पैदा हुए खरगोश की आंखें बंद होती है और उनके शरीर पर बाल नहीं होते। सभी नए पैदा हुए खरगोश आमतौर पर घोसले में मादा खरगोश द्वारा बनाए गए बिछोने पर लेटते है । आमतौर पर मां सुबह के समय दिन में एक बार अपने पैदा हुए बच्चे को दूध पिलाती है। यदि हम मादा खरगोश को बच्चे को दिनभर दूध देने के लिए बाध्य करेंगे तो वह अपना दूध नहीं निकालेगी। आमतौर पर पैदा हुए खरगोशों की त्वचा अपनी मां से प्राप्त दूध की पर्याप्त मात्रा से चमकीली होती है। लेकिन जिन खरगोशों को अपनी मां से पर्याप्त दूध नहीं मिल पाता उनकी त्वचा सूखी होती है और उस पर झुर्रियां दिखाई पड़ती है। और उनके शरीर का तापमान निम्न रहता है एवं वे आलसी दिखाई देते हैं।

आमतौर पर एक मादा खरगोश के 8 से 10 स्तन होते हैं। जब नए पैदा हुए खरगोशो की संख्या स्तनों की संख्या से ज्यादा होती है तो नए पैदा हुए खरगोश पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं प्राप्त कर पाते और उसका परिणाम उनकी मौत के रूप में सामने आता है। दूसरी और अन्य परिस्थिति में जैसे उनकी अच्छी तरह से देखभाल में कमी के कारण भी उनकी मौत संभव है। ऐसे में सौतेली मां का इस्तेमाल नए बच्चे की नर्सिंग के लिए किया जाता है।

बदले जाने वाले बच्चों और सौतेली मां के बच्चों के बीच उम्र का अंतर 2 से 3 दिन से ज्यादा नहीं होना चाहिए। 3 से ज्यादा बच्चो को सौतेली माँ से नहीं बदला जाना चाहिए। छोटे खरगोश को घोसले (नेस्ट बॉक्स) में लगभग 2 से 3 सप्ताह तक रखा जाता है। बाद में घोसले को नेस्ट बाॅक्स पिंजरे से हटा दिया जाता है । छोटे खरगोशों से 15 से 20 दिन की उम्र में दूध छुड़ाया जा सकता है। दूध छुड़ाते समय पहले मादा खरगोश को किडलिंग पिंजरे से हटाना चाहिए और खरगोशों को उसी पिंजरे में 1 से 2 हफ्ते रखा जाना चाहिए बाद में खरगोशों का लिंग पहचाना जाना चाहिए और फिर अलग-अलग लिंग के खरगोशों को अलग-अलग पिंजरे में रखा जाना चाहिए और अचानक खरगोशों के भोजन में परिवर्तन नहीं करना चाहिए।

शुरुआती 15 से 20 दिनों तक छोटे खरगोश मां के साथ रहते हैं। इस समय के दौरान केवल माता का दूध पैदा हुए बच्चों के लिए भोजन होता है। 15-20 दिन के बाद छोटे खरगोश पानी और खाना लेने में सक्षम हो जाते हैं। इस समय में वे बिमारियों के प्रति कम प्रतिरोधी होते है। इसलिए यह सलाह दी जाती है कि छोटे खरगोशों को उबला हुआ ठंडा पानी दिया जाना चाहिए। एक मि.मी. हाइड्रोजन पेरोक्साइड एक लीटर पानी में खरगोशों को उपलब्ध करवायें जाने से 20 मिनट पहले मिलाया जाना चाहिए।

कमजोर और उदासीन, वजन में कमी और दुर्बलता, बालों का तेजी से गिरना, खरगोशों में किसी सक्रिय गतिविधि का न होना आमतौर पर वे पिंजरे में किसी एक स्थान पर सुस्त पड़े रहते हैं। खाने को कम मात्र में लेना, आंख, नाक , मलद्वार और मुंह से पानी या अन्य किसी चीज का बाहर निकलना ,शारीरिक तापमान और श्वसन दर का बढ़ना।

स्वस्थ और चमकीले बाल, अत्याधिक सक्रिय , खाने के बाद भी अच्छा और जल्दी से खा लेना आमतौर पर आंखे बिना किसी डिस्चार्ज के चमकीली रहती हैं, उत्साहजनक तरीके से वजन बढ़ना । खरगोश को होने वाली बिमारियां लगातार खांसने और छींकने के दौरान खरगोश अपनी नाक अपने आगे के पैरों से लगातार खुजलाते हैं। अक्सर खरगोश अपने आपको साफ करते रहते है जिससे उनके बाल झड़ते है जो मुह के रास्ते पेट मे जा सकते है ।

श्वसन के दौरान निकलने वाली आवाज बर्तनों की खड़खड़ाहट जैसी होती है। इसके अलावा इनमें बुखार भी होता है इसके लिए जिम्मेदार सुक्ष्म जीवाणु जो गंदगी व सीलन से पैदा होकर उनकी त्वचा के नीचे पिस्सू पैदा कर देते हैं और उनका गला खराब कर देते हैं।
उपचारः- एंटेराइटिसः खरगोशों में एंटेराइटिस पैदा करने के लिए कई सूक्ष्म जीवाणु जिम्मेदार होते है। इन जीवाणुओं के प्रति खरगोशों को संवेदनशील बनाने में खाने में हुआ अचानक बदलाव, भोजन में कार्बोहाइड्रेट की अत्याधिक मात्रा , प्रतिरोध क्षमता में कमी, अस्वस्थ भोजन आदि जिम्मेदार है। इस बिमारी के चिकित्सकीय संकेतों में हैजा, पेट का आकार बढ़ना, बाल मुरझाना और पानी की कमी है।
नोटः किसान रैबिट फार्म अपने साथ काम करने वाले सभी किसानों को फार्म आरम्भ करते समय पूरी ट्रेनिंग व तकनीकी सहायता व मार्गदर्शन निःशुल्क उपलब्ध कराता है।
छोटे खरगोशों की देखभाल करने वाली माता खरगोश को मासटाईटिस हो सकता है जिससे उसके उदरांग में यह बीमारी होती है और वह लाल और दर्दीला हो जाता है। एंटीबायोटिक देने से इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है। फंगस के संक्रमण से होने वाली बीमारियां खरगोशों में त्वचा का संक्रमण डर्मटोपाइसिस फंगस से होता है। कान और नाक के आसपास के बाल की कमी हो जाती है। खुजली के कारण खरगोश लगातार संक्रमित क्षेत्रों में खुजली करते हैं जिससे उस हिस्से में घाव हो जाते हैं।
उपचारः- प्रभावित हिस्सों में ग्रीसियोफुल्विन या बेंजाइल बेंजोएट क्रीम लगानी चाहिए। इस बीमारी के नियंत्रण के लिए भोजन के प्रति किलो 0-75 ग्राम ग्रीसियोफुल्विन मिलाकर दो हफ्तो तक दिया जाना चाहिए।

खरगोश फार्म ऐसे स्थान पर होने चाहिए जो पर्याप्त हवादार हो। पिंजरे साफ सुथरे होने चाहिए। खरगोश के फार्म के चारों ओर पेड़ अतिरिक्त लाभदायक हैं। साल में 2 बार सफेदी की जानी चाहिए। हफ्ते में दो बार पिंजरों के नीचे चूने का पानी छिड़कना चाहिए।
गर्मी के मौसम में गर्मी से होने वाली मौतों को रोकने के लिए खरगोशों पर पानी का छिड़काव किया जा सकता है।

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